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कविता

दारा की न दौरि यह खजुएकी रारि नाहिं

भूषण


दारा की न दौरि यह खजुएकी रारि नाहिं,
बाँधिबो नहोय या मुरादसाह-बालको।
मठ विश्वनाथ को, न बास ग्राम गोकुल को,
देवी को न देहरा, न मंदिर गोपाल को।
गाढ़े गढ़ लीन्हें अरु बैरी कतलाम कीन्हें,
ठौर ठौर हासिल उगाहत हैं साल को।
बूड़ति है दिल्ली सो सँभारे क्यों न दिल्लीपति,
धक्का आनि लाग्यौ सिवराज महाकाल को।।


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